रेड सिग्नल
जैसे ही रेड सिग्नल हुआ,
हाथों में नकली फूलों का गुलदस्ता और गोद मे दुधमुंहा बच्चा लिए एक 25, 26 साल की लड़की मटमैली ओढ़नी में लिपटी गाड़ी की आगे की सीट की तरह तेजी से दौड़ी।
फूल ले लो साहब, मेरा बच्चा दो दिन से भूखा है।
कुछ पैसे दे दो साहब वो गिड़गिड़ाई। 'हट यहाँ से तुम भिखारियों का कुछ नही हो सकता सिग्नल हुआ नहीं कि दौड़े चले आते हो भीख मांगने शर्म नही आती तुम लोगों को'।
कुछ काम-धाम क्यों नहीं करते हो ढंग का।
वो पहले चुपचाप हाथ फैलाये सब सुनती रही फिर बोली
शर्म तो बहुत आती है साहब भीख मांगने में लेकिन कोई काम पर रखता नही हम गरीबो को।
साले सब कामचोर हो, काम करना ही नहीं चाहते।
अब रेड सिग्नल ग्रीन सिग्नल में बदलने ही वाला था कि उस लड़की ने ओढ़नी थोड़ी सी सरका कर ब्लाउज के आगे के बटन खोल अपने दुखमुहे बच्चे को छाती से लगा लिया।
साहब देखता रहा और झट अपनी जेब से रुपये निकाल उसकी हथेली पर रख दिये।
और गाड़ी साइड में लगा उसे अपने पास बुला लिया।
ये है आज के अमीर और गरीब दोनो अपनी अपनी जगह आज के परिवेश में ढल चुके।
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