लहसुनियां

गाड़िया लुहार रोज ठिकाने बदलते रहते है।
सड़क किनारे कहीं भी तिरपाल की झोपड़ी डाल रह लेते है कुछ दिन। सड़क किनारे ही चूल्हा जलता है इनका और मोटी गर्म रोटियां सिकती है। और वही सिलबट्टे पर लालमिर्च, लहसुन की चटनी पीस सब खाना खा लेते है।

लहसुनियां यही नाम रख दिया था गोमा लुहार ने अपनी बड़ी बेटी का। बेटी की उम्र 14 साल की थी पर रहती बड़ी औरतों के जैसी थी। उसकी गोद में हमेशा एक बच्चा टंगा रहता था।
सब उसके इस बच्चे को उसका छोटा भाई समझते थे।
और वो भी सबसे यही कहती थी।

गोमा ने अपनी बेटी का लग्न बचपन में ही अपनी रिश्तेदारी में कर दिया था। अब उसके ससुराल वाले उसे ले जाना चाहते थे। पर गोमा अभी बेटी को भेजना नहीं चाहता था कुछ दिन
क्योंकि एक सेठ का उमरदराज बेटा उसकी बेटी पर मर- मिटा था। वो जब भी आता थैला भर के राशन लाता था।
और पूरा परिवार उस राशन पर ऐश कर रहा था।
लहसुनियां का ये बच्चा भी उसी की देन था। गोमा ने सोच रखा था जब तक इस शहर में है तब तक वो लहसुनियां को अपने ससुराल नहीं भेजेगा।
दूसरे शहर में डेरा डालते ही वो लहसुनियां का बच्चा खुद रख लहसुनियां को अपने ससुराल भेज देगा।
जब तक यहाँ है अपनी माली हालत सुधारेगा।

कितने अजीबो-गरीब लोग बेटी की जिस्म की कमाई से घर की माली हालत सुधारने से भी नहीं चूकते।

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