लघुकथा : शापित गड्ढे

गड्ढे  में गिरती दुनिया 

कोरोना ने हम सबको गड्ढे में डाल दिया। अब बस मिट्टी की भराई बाकी है। बरसात का मौसम 2, 4 दिनों में आने वाला है, पर दिहाड़ी मजदूर नहीं मिल रहे नगरनिगम वालों को।
भ्रष्ट अफ़सर और मुंहलगे ठेकेदार समझ नहीं पा रहे है अब क्या किया जाए।

एक अफ़सर दूसरे अफ़सर से बोल रहा है....।
कम्बख़्त ये वीआईपी लोग समझते क्यों नहीं अभी कोरोना काल है। ये सड़क के गड्ढे अभी कैसे भरे? बस निकाल दिया 
सड़क पंचनामा।
ठेकेदार मजदूर सब गायब है, अब ये सड़क क्या हम भरे जाकर। अधिकतर मजदूर अपने गांव, देहात, शहर लौट चुके है। सारा निर्माण अधूरा पड़ा है। गांव- देहात से अब मजदूरों को कैसे लाये। अब उन्हें कंधे पर बिठा कर तो लाया नहीं जा सकता है। अब क्या करें?

दूसरा अफ़सर मुझे एक उपाय सुझा है इस समस्या का समाधान शायद इससे निकल जाए।
पहला अफ़सर जल्दी बताइए उपाय जान गले मे अटकी हुई है।
तो सुनिए.... इस सड़क पर कल ही एक एक्सीडेंट हुआ है।
एक लड़के का, बोल देते है उस वीआईपी के चमचों को कि वो कोरोना पॉजिटिव था।
वो खुद ही अपना रास्ता बदल लेगा या आना ही कैंसिल कर देगा।
बढ़िया उपाय सोचा है आपने। चलो इस उपाय को आजमाते है।
इन वीआईपी लोगो के बड़ा दुखी कर रखा है।

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