लघुकथा : आड़ी-तिरछी रेखाएं
" मम्मी देखों मैंने गुलाब का चित्र बनाया " 'अरे वाह बहुत सुंदर बनाया है आपनेे '।
और बनाओ, ये बोल उसकी मम्मी अपने काम में वापस व्यस्त हो गई।
वो कभी कोई अड़ा - तिरछा फूल तो कभी चार लाइनें खींच
किसी जानवर की आकृति बनाता जाता और लगातार अपनी मम्मी को दिखाए जा रहा था।
और उसकी मम्मी बिना देखे ही और बनाओ बोल अपने काम में लगी रही।
मम्मी देखों ये मैंने " मम्मी " बनाया है।
" अरे दिखाओं तो "
मम्मी देखती रह गई ! उसने बस " मोबाइल " के चार डंडे खींच दिए थे और मम्मी की "गोल " बिंदी बना दी थी। और खुद दूर खड़ा हो गया था चार आंसू के साथ।
" ये आपने क्या बनाया है " मम्मी बनाया और आपका फोन बनाया बनाया है मम्मी, ।
और आप दूर जाकर क्यों खड़े हो गए थे ?
" क्योंकि आप मोबाइल से ज्यादा प्यार करती हो मम्मी मुझ से कम।
उसकी मम्मी की आँखों में भी अब आँसू थे, और उसने अपने बेटे को गले से लगा कर कहा मुझे माफ़ कर दो बेटा मैं मोबाइल से नहीं आपसे ज्यादा प्यार करती हूँ।
बेटा मासूमियत के साथ बोला, " सच्ची मम्मी "
" हाँ मेरे बच्चे " और दोनों खूब देर यूं ही बातें करते रहे और बच्चा यूं ही माँ के गले में प्यार से झूलता रहा।
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