प्रेमपत्र

प्रेमपत्र~~

उसके फोन का सिग्नल नहीं मिल रहा था, इसलिए वो थोड़ी झल्लाई और दो चार गालियां मन ही मन जिस कम्पनी का फोन था उस कम्पनी को दे, छत पर चली गई मोबाइल के बटन को दबाते हुए। 
"एक तो नेटवर्क नहीं मिल रहा और अभी ही इसे लड़ाई करनी थी। कोई बात नहीं सुनता मेरी, वो बड़बड़ाती जा रही थी।"
"10 बार कहा है एक नया मोबाइल दिला दे पर नही प्रेम की पींगे बड़ी-बड़ी और एक मोबाइल भी नहीं दिला सकता।
बस लड़वा लो लड़ लेगा हर समय न वक्त देखता न वार देखता है। 
"हाय रे मेरे फूटे नसीब, अब कैसे समझाऊंगी इसे सिग्नल मिलते ही फिर लड़ेगा। कहेगा मेरा फोन क्यों काटा। किससे बात कर रही थी। मुझे समझती क्या है"।
वो ये सब बड़बड़ाती छत के एक कोने से दूसरे कोने में यूँ ही तेज तेज चल रही थी। उसकी नजरें मोबाइल पर ही गड़ी हुई थी। छत पर एक छोटा पत्थर का टुकड़ा पड़ा हुआ था, इससे उसके पैर में चोट लग गई और वो वही गिर पड़ी।
उसके गिरते ही किसी ने उसे सम्हाल लिया था।

अरे तुम वो देखती रह गई.....!

"हाँ तो क्या बड़बड़ा रही थी तुम मैं तुम्हारी एक बात नहीं सुनता, मोबाइल भी नहीं दिलाता, और हाँ हर बात में लड़ता हूँ क्यों?

अरे तुम कब आये बताया क्यों नहीं,  ' कैसे बताता एक तो बात करते-करते फोन कट गया, भागा-भागा यहाँ आया तो देखा महारानी जी मुझे ताने पर ताने सुना रही है। आधे घँटे से छत पर एक कोने से दूसरे कोने में तुम्हारे पीछे भाग रहा हूँ।
पर मजाल है जो मोबाइल पर से ध्यान हटा हो।

"सुनो तुम्हारे लिए नए मोबाइल का ऑर्डर कर दिया है दो चार दिन में आ जायेगा। तब तक तुम मुझे  "प्रेमपत्र"  लिखना।
अब मैं तुम्हारी बैचनी पढ़ना भी चाहता हूँ"।
"भगवान उस कम्पनी वाले का भला करे जिसे तुम गालियां दे रही थी। आज उसी की बदौलत मैं सच्चे प्यार को जान पाया हूँ"।
लिखोगी न मुझे अपनी बैचेनियाँ, बोलो न?
वो शर्माकर उसकी बाँहो में समा गई।
और वो अपना सच्चा प्रेम पा तृप्त हो गया।

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