वर्षा जल

शज़र पर बैठी गौरैया आसमान ताक वर्षा जल पी रही थी। जाने क्या खुद से ही कह रही थी।
शायद कह रही थी 
"आज आसमान इतना साफ कैसे है"।
"आज सूरज इतना उजला कैसे है"।
"आज चहुँ और इतनी शान्ति कैसे है"।
वो समझ नहीं पा रही थी।
ये क्या हो रहा है।
पर आसमान में बैठा भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।
इंसान को उसकी करनी की सजा दे
वातावरण शुद्ध कर रहा था।

पहाड़ी पर एक छोटा सा गांव था।
उसमें एक घर में एक बालक अपनी माँ के साथ रहता था
उसका नाम श्रवण था। पर वो न सुन नहीं सकता था, न देख सकता था। उसकी माँ ही उसकी दुनियां थी।
एक दिन बहुत वर्षा हो रही थी तो उसने अपना मुंह खोला और वर्षा जल पिया। ऐसा वो जब भी वर्षा होती थी करता था। उसे वर्षा जल बहुत पसंद था। लेकिन आज वो वर्षा जल पीते ही माँ से जा लिपट गया।
और इशारों में माँ से कहने लगा माँ मैं अमृत पी आया।
वो देखो बाहर बरस रहा है।
माँ ने उसका माथा चूम लिया और कहा बेटा आज भगवान ने हम इंसानों को सबक सिखा प्रकृति को फिर से स्वच्छ कर दिया है यही अमृत है।

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