अंतः वस्त्र

आज सुबह-सुबह फिर उसकी माँ से कहासुनी हो गई।
उसे माँ पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
आज माँ ने उसे कुछ ज्यादा ही सुना दिया था।

आखिर उसकी गलती ही क्या थी, बस इतनी की वो सुबह-सुबह नहाने के बाद अपने अंतः वस्त्र बाहर खुले आंगन में उसे सूखा आई थी।

माँ के कहने पर उसने अंतः वस्त्र अपने सलवार-शूट के नीचे सुखाने शुरू कर किए थे, लेकिन अक्सर जब भी मौसम खराब रहता उसके अंतः वस्त्र सूखते नहीं थे और उसे वही गीले अंतः वस्त्र पहनने पड़ते थे।

माँ को उसने बहुत समझाया लेकिन माँ नहीं समझी उल्टा उसे ही हमेशा डाँट देती थी।

" माँ कहती  ये क्या तमीज है सब आ जा रहे है और तूने ये कपड़े यहाँ खुले में सुखा दिए सब क्या सोचेंगे "?
कल को ससुराल जाएगी तो हमारी नाक कटवायेगी
माँ अक्सर उसे ये बात बोलती थी।

माँ को अब बहुत परेशानी रहती थी उन्हें बच्चेदानी में सिस्ट हो गई थी बहुत ज्यादा, इसलिए डॉक्टर ने उन्हें बच्चेदानी के ऑपरेशन के लिए कह दिया था। कारण वही गीले अंतः वस्त्र
पहनना और उन वस्त्रों को धूप नहीं लगना।
पर माँ ये बात समझने को तैयार नहीं थी।
अक्सर इसी बात पर सुबह उसका उसकी माँ से झगड़ा हो जाता था।

पर उसने भी सोच लिया था जिसको जो सोचना है सोचे पर अब वो बिना सूखे, धूप लगाए अंतः वस्त्र नहीं पहनेगी।
भला ये भी कोई बात हुई कि वो अपने कपड़े भी सूखा कर नहीं पहन सकती।
पर पिता-भाई तो आराम से कहीं भी अपने कपड़े सूखा देते है फैला कर बिना ये सोचे कि कोई क्या सोचेगा।

हर बात हर हिदायत हम औरतों को ही क्यों??

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