तुम भी न अम्मा !
तुम्हारे घुटनों की ग्रिस खत्म हो गई है।
अरे मेरे घुटनों के पीछे क्यूँ पड़ी रहती है री।
जा तेरी माँ से वो लहसुन का तेल मेरे घुटनों के लिए बनाया है, ले आ जाकर।
और सुन वो सूजी के हलवे की भी कही थी उससे, जरा देखियो उसने बनाया की नहीं।
अम्मा तुम तो बहुत चटोरी हो गई हो जब देखो तब हलवा बनवाती रहती हो मेरी माँ से।
तुम्हें पता है वो हमेशा कैसे गुस्से में हलवा बनाती है तुम्हारे लिए।
हाँ पता है री, रहने दे गुस्से में वो तो उसकी आदत है हमेशा भुनभुनाने की, पर हलवा बड़ा स्वाद बनाती है री तेरी माँ।
सुन अब बातें कम कर जरा देख कर आ हलवा बना की नहीं।
अच्छा आती हूँ देख कर, 'और वो हलवे का भरा कटोरा ले आई, अम्मा ये लो तुम्हारा हलवा।
" वाह क्या खुश्बू है देशी घी की, हाँ सो तो है पर तेरी माँ ने इसमें ज़रा बादाम कम डाले है।"
अम्मा तुम सच्ची बहुत चटोरी हो गई हो जब देखो तब दांत दर्द का बहाना बना हलवा खाती हो।
अरी सुन तूने हलवा खाया की नहीं, नहीं अम्मा मैंने तो सुबह बासी रोटी पेट भर खा ली थी।
बासी रोटी, मेरी लाडो रोज बासी रोटी खाती है, सत्यानाश जाए उस कलमुँही का, अरे अम्मा गाली क्यूँ दे रही हो मेरी माँ को?
अरी तो और क्या करूँ, तुझे खुद जनती तब भी बासी रोटी खिलाती क्या बता।
अब मैं खुद बहुत पछता रही हूँ तेरे बाप की दूसरी शादी करवा कर, वो तो ये मकान मेरे नाम है इसलिए ये दोनों लोग-लुगाई हम दोनों को रख रहे है, और मुझे मकान अपने नाम करवाने के लिए हलवा खिला देते है। नस-नस पहचानती हूँ मैं तेरे माँ- बाप की।
तुम भी न अम्मा!
आ मेरे पास आ मेरी लाडो ले ये हलवा खा ले, आधा मैंने खा लिया है। मुझे पता है मेरी लाडो को हलवा कितना पसंद है।
सुन मुझ से बादाम चबाए नहीं गए सारे तू खा लेना और कटोरा रख आना।
और वो लहसुन का तेल तेरी माँ को बोल दे आकर लगा जाएगी।
आखिर मकान का सवाल है, मेरा कहा तो मानना ही पड़ेगा इन दोनों को।
तुम भी न अम्मा!
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