गहरा दर्द
दर्द कैसा भी हो
आंखों का रंग श्वेत
चेहरा गीला हो ही जाता है।
देह का भार शून्य
मन का भार अधिक हो ही जाता है।
प्यासी आंखों में
समुंदर का तूफान आ ही जाता है।
न सांझ का पता
न सवेरे का पता
आंखों का रंग श्वेत
चेहरा गीला हो ही जाता है।
देह का भार शून्य
मन का भार अधिक हो ही जाता है।
प्यासी आंखों में
समुंदर का तूफान आ ही जाता है।
न सांझ का पता
न सवेरे का पता
रात बेसुध मौत सी लगती ही है।
देह रुग्ण, मन रुग्ण
हो ही जाता है।
कैसी विचित्र बात है
ज्यादा खुशियों को
ग्रहण की मारक दशा लग ही जाती है।
सबको खुश करने के चक्कर मे
इंसान खुद मर ही जाता है।
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