तितली सा मन

हर पल मन भटक जाता है,
कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ
लुढ़क जाता है।
ये मन भी अजीब है,
कभी उदास तो कभी यूं ही
मुस्कुरा जाता है।
कभी सोता हुआ जागता
तो कभी जागता हुआ सोता मन
बिन बारिश वर्षा में भीग जाता है।
तो कभी यूं ही हवा में उड़ जाता है।

तितली सा मन
जाने क्या सोच
सरसों संग पीला
गुलाब संग लाल हो जाता है।
यूं ही भागता मन
कभी धान के खेतों में 
तो कभी किसी बाग में झूम जाता है।
तो कभी खंडहरों में
भटक जाता है।
तितली सा मन
तितली बन उड़ जाता है।
फुर्ररर हो जाता है !!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

प्यार के रूप अनेक

नियति का विधान...!!!