अपंग जीवन

पेट की आग बुझाने की खातिर इंसान क्या नहीं करता।
जीवन भर चाकरी, समझौता, घिसटता जीवन भी चुपचाप जी लेता है। 

हमारे यहाँ के रिवाज भी अजीब है। दंत-कथाओं  को सत्य
हक़ीकत को नकार खुद को सही साबित कर लिया जाता है।
नागपंचमी में मांसाहारी सांप को दूध पिला खुद को धार्मिक भी घोषित कर लिया जाता है।

पेट की आग बुझाने की खातिर वो दर-दर नोकरी मांगता रहा। पर किसी ने उसको काम पर नहीं रखा। कारण उसका कम पढा-लिखा होना और साथ में अपंग होना भी श्राप था।
उसके लिए।
एक रात वो चौराहे पर असहाय बैठा था। तभी एक चोर वहां से गुजरा तो उस चोर को उस पर दया आ गई। उस चोर ने उससे बातें की तो उसने अपनी सारी व्यथा सुना दी।
तब चोर ने उसे अपने साथ चोरी करने का प्रस्ताव दिया।
तो उसने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया। तब चोर ने उससे कहा मैं भी चोर मजबूरी में बना पर तुम्हारा हौसला देख अब मैं भी चोरी नहीं करूंगा।
चलो हम एक चाय की थड़ी खोल चाय बेच खुद का गुजारा कर लेते है।
लेकिन अब उसने मना कर दिया कहा मैं तुम्हारे साथ चोरी करने के लिए तैयार हूं।
तब चोर ने कहा  "बड़े अजीब शख्स हो चोरी करना चाहते हो, जबकि मैं ये चोरी करना छोड़ना चाहता हूँ।"
सुनों तुम चोर मत बनो, न मैं अब चोरी करूंगा।
अब हम दोनों चाय या सब्जी बेच लेंगे तुम चिंता मत करो।
अब मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुमने ही तो मेरी आँखें खोली है।
और दोनों गले मिले और नई जिंदगी की शुरुआत करने चल पड़े।
हम सब भी ऐसे ही है। अपंग हमारी जीवन शैली और हम बाते लोगो की करते है। खुद कुछ नहीं करते जबकि हमें 
हमेशा खुद कुछ करने के बारे में सोचना और करना चाहिए।

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