बथुए का साग
अब उसे इससे ही रोटी खानी पड़ेगी, क्योंकि दूसरी कोई सब्जी आज नहीं बनेगी छुटकी की जिद्द के कारण।
माँ, पिताजी, भाई, बहन सबकी डाँट खा वो दादी के बिस्तर में दुबकी पड़ी है।
बस उसकी दादी ही उसकी जिद्द को सुन रही है।
दादी ने उसकी माँ को फरमान सुनाया आज मैं भी ये साग नही खाऊँगी।
जबकि उसकी दादी को ये साग बहुत पसंद है।
दादी का फरमान सुना छुटकी की माँ ने कोई और सब्जी बनाने का प्रस्ताव रखा लेकिन दादी ने मना कर दिया।
छुटकी बिस्तर में दुबकी-दुबकी सब सुन रही थी।
वो सोचने लगी दादी आज सब्जी क्यों नही खाना चाहती।
दादी को तो ये साग बहुत पसंद है।
छुटकी उठी और दादी का हाथ पकड़ कर रसोई में ले गई
और माँ से बोली जो दादी को पसंद अब से वही मेरी पसंद
क्योंकि छुटकी दादी से और दादी छुटकी से बहुत प्रेम करती थी।
और फिर छुटकी ने दादी के साथ वही बथुए का साग प्रेम भाव से खाया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें