स्त्री....!!

स्त्री

गडमड जीवन
गडमड अनुभव
गडमड उसका स्वरूप
गडमड हो गया समाज में।

सौम्य व्यवहार
सौम्य जीवन
धीरज धरते-धरते
उठ गया उसका विश्वास
खुद पर से ही।

झूठी प्रशंसा
झूठे लोग
निगल गए उसका जीवन
उसका वर्चस्व।

घबराहट में पैर पसारे
खुद को ही न जाने
स्वपन लोक में जिये
हक़ीकत से भागे
अपने ही जीवन से अनजान
शिकारी समाज में 
फंस गई बेचारी
तकदीर की मारी
स्त्री बेचारी।

दूसरों को जीते-जीते खुद को जीना भूल गई
ऐ स्त्री एक जीवन अब भी तेरा शेष है।
आ जी ले मरने से पहले
अपना जीवन इस जीवन में !!

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