जन्म से मृत्यु तक
चिंतन ये काले है।
अद्भुत हर बात
विराट हर राज
जन्म से मृत्यु तक
सब निराले है।
रूढ़िवादी विचार
ज्यामतीय शैली के अंदाज
सब लकीर के फकीर
अपने ही कैनवास में उलझे
अपने ही रंगों में डूबे
अपने ही चित्र में उलझे
अपने ही इर्द-गिर्द चक्कर लगाते है।
न कोई चमक
न कोई पुरुस्कार
न कोई गुणगान
ये कैसा कठोर नियम
जीवन संसार है।
चटख रंगों से प्यार
सादा रंगों से इनकार है।
मन में बोया प्रेम
लहराया प्रेम
पर जीवन कसौटी पर
खरा न उतरा प्रेम।
साधरण सी जिंदगी
व्यय हो गई आप ही
इतिहास के पन्नें भी
रीते रह गए
अकारण ही।
जन्म से मृत्यु तक
श्रृंगार हुआ
औरों द्वारा
बीच का श्रृंगार
खुद ही कर लिया
औरों की खातिर
स्थूल काया का
मति भ्रम में।
एक ही बिंदु
एक ही छांव-धूप
फिर भी गम्भीरता से न लिया गया
कोई प्रश्न कोई उत्तर मेरा।
पूरा जीवन यूं ही बीत गया
बीच मझधार में
अब समझ में आया
माटी की मेरी काया
माटी था जीवन मेरा
माटी में मिल गया
ठंडा होते ही।
ये आग का गोला
बना मैं !!
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