अथाह प्रेम.......💟
प्रेम विस्तार देता है, सकुंचित नही करता।
इसलिए मैं हर दिशा में फैल रही हूँ,
प्रकाश बन, तुम संग....!!
सुनो....
तुम कनेर के फूलों से हो
और मैं तुम्हारा पीला रंग
मैं तुम संग माला में गुंथी रहना चाहती हूँ।
देवों के चरणों मे शीश नवाना चाहती हूँ,
गंगा जल बन कर।
तुम मेरा अंतः मन हो
जहाँ मैं मेरी रुचि को निखारना चाहती हूँ,
तुम्हारे ज्ञान की आभा में।
मैं कागज़ की गुड़िया
तुम आजाद पक्षी
ले चलों मुझें अपनी
आजाद दुनियां में
जहाँ मैं सोनचिरैया बन
गगन में उड़ सकूं
तुम संग।
कांपती सी मेरी मनःस्थिति
कांपता सा मेरा शरीर
तुम्हारे मजबूत काँधों के सहारे ही तो
हर डर का सामना कर रहा है।
रहस्यमय जीवन का।
कांच सी आंखे
पारदर्शी जिस्म मेरा
धैर्य न था जिसका गहना।
तुम संग वो भी
धैर्यवान होना सीख रहा है,
इस रहस्यमय जीवन में।
तुम ठोस इमारत
मैं नींव का पत्थर
चलो इस दुनियां को
अपना परिचय देते है।
अपनी अनन्त गहराई का
अपनी जिज्ञासा का।
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