अनकहा दर्द
अनकहा दर्द मेरा..
सुख-चैन छीन..
मुख पर उदासी..
नैनो में पानी भर देता है..।
रंग-बिरंगे ख़्वाब मेरे..
समय की पगडंडी में भटक कर..
न जाने कहाँ चले गए..।
अब तो बस..
खोखले रिश्तों की जमा-पूंजी बची है..।
जहाँ सिर्फ समय को जी रही हूँ..।
लोग क्या कहेंगे??
इस डर के साथ..
खुद को मार..
सबको खुश..
रखने की कोशिश कर रही हूँ..!!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें