उर्वशी 2 (अप्सरा)

 


पारदर्शी आँखों में ख़्वाब समेटे मैंने

तुम्हारे लिए रुमाल के कोनों पर

रेशमी गट्टी के धागों से कढ़ाई कर

सुर्ख रंग के गुलाब उकेरे है।

मेरी हथेली की गर्माहट वहाँ छुपी है।

तुम चाहो तो ये गर्माहट महसूस कर लेना।


सुनों तपती दुपहर भर मैंने

शब्द चुन चुन एक टोकरी भर

गज़ल लिखी है

तुम चाहो तो 

ये ग़जरे सी गजल सुन लेना

मेरे इंतजार की तड़प,

आँखों की बरसात

होंठो की चुप्पी, बेबसी

सब खुद महसूस कर लेना।


सुनों ये आँखे झूठ नहीं बोलती है

होंठ यूं ही सिसकियों में तुम्हें नहीं

पुकारते है।

ये तुम्हारी बंदगी करते है 

खुदा सी, माला जपते है ईश्वर सी।

तुम चाहो तो ये आँखे पढ़ लो

मुझे बिना बताए।


सुनों ये सांसों की बैचेनी

गुमसुदा रातों की तड़प

अधरों की बेताब मुस्कान

बदन से लिपटा यौवन

सब तुम्हारे लिए है।

ये सारा मिठास

एक नदी में बह रहा है

तुम चाहो तो बांध बांध लो

अपने लिए।


सुनों काले काले मोतियों की माला

पिरो रही हूँ

तुम चाहो तो पहना देना।

पूर्णिमा की रात ये इश्क़

पूर्ण कर देना।






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