गहरा दर्द

 


शांत चित मन मे ये कैसी आग लगी है,

हर तरफ धुआं हर तरफ पानी है।

तन को व्यवस्थित करते-करते 

मन खो गया।

मन को व्यवस्थित करते-करते तन खो गया।

अब तन-मन दोनों अशांत घने जंगल में 

विचर रहे है।

भूख-प्यास सब भूल अनमने से यूं ही डोल रहे है।


आधी पृथ्वी पूरे आकाश का मालिक होना है,

दर्द के सागर में तुम्हें डुबोना है।

वो खारा दर्द मुझे आधा करना है।

वो तुमनें मुझे विरासत में दिया है।


आंसुओ से भरी ये दो गहरी आंखे

जिसके दर्द का तुम अंदाजा नहीं लगा सकते

दर्द की गहराई  नाप नहीं सकते

वो अप्रतिम सौंदर्य की मलिका 

स्त्री है...!!


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