जिंदगी है अपने हिसाब से चलती है....!!

 


हमारे अंतस में छीपा होता है एक डर, एक क्रोध

जिंदगी की जद्दो-जहद में फलती-फूलती निराशावाद का, अपशगुन का।

किसी भावी आशंका से पीड़ित हम स्वयं को ही चिंता की अग्नि में जलाते है,

आंखों में आंसू तन पर थकान लिए।


समझ का खेल है सब

नसीब पर किसका जोर चला है।

डर में हम धीमी आवाज में भी कांप जाते है।

और क्रोध में हम सब भूल जाते है।

सिसकियों की कतरन में हम

विक्षिप्त से हो जाते है।


स्त्रियां अक्सर क्रोध में बोलती ज्यादा

पुरुष मौन हो जाते है।

दोनों ही स्थितियों में खुद का कत्ल होता है।

ज्यादा बोलने से क्रोधवश अपशब्द ही बोले जाते है।

और मौन अंदर ही अंदर घुट जाता है और गलत फैसला कर बैठता है।

बाद में दोनों पछताते है।

हमारे अंतस में हमेशा एक दुविधा चलती रहती है,

दिल और दिमाग मे लड़ाई चलती रहती है।

और सजा आंखों को मिलती है।

न हमेशा दिमाग सही होता है,

और न हमेशा दिल सही होता है।

बस हमारे विचार सही होने चाहिए

वर्तमान के फैसले में।

बाकी सब तो परिस्थितिवश सब खुद ब खुद

घटित हो जाता है।

हम चाहे या न चाहे कोई फर्क नहीं पड़ता

जिंदगी है अपने हिसाब से चलती है।






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