उर्वशी. (अप्सरा)

 


शुभ संकल्पों के श्वेत पुष्प 

मैंने गीली मिट्टी में बो दिए है।

अब देखना इसमें से मोती झरेंगे

मेरे आँचल में सिर्फ तुम्हारे लिए।


मेरी स्मृति में सिर्फ तुम बस्ते हो 

मनमोहक संगीत जैसे...

पवन बीच उड़ती सुगंध जैसे।


सुनों तुम बहुत अच्छे हो

क्यारियों में खिले गुलाब जैसे हो

बारिश में अलगनी पर टँगी बूंदो जैसे हो

जिसे मैं एकटक निहारती रहती हूँ

बावली बन सकुचाती पलकों से।


सुनों मालती के फूल महक रहे है

आसमान से अमृत बरस रहा है

पत्तों पर बूंदों की पायल बज रही है

तुम मेरे माथे पर लाल बिंदी सजा दो न

अपने होंठो से।


सुनों बाहर जलतरंग बज रहा है

बेला की डाल झूल रही है

मीठा सा एहसास हिलोरे मार रहा है

तुम बारिश संग कच्ची धूप बन आ जाओ

मुझे इस सुनहरे एहसास में भीगना है

उर्वशी बन।।













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