प्रेमपत्र


 प्रेमपत्र


नेह की छांव में कुछ मुट्ठीभर शब्द 

कागज़ पर बिखेर रही हूँ।

तुम जी भर पढ़ना 

ये शब्दों की पियानो पर बजती प्रेमल धुन।


धुन सुन तुम  रुमानियत से भर जाना और

खोल देना सारे खिड़की-दरवाज़े अपने कमरे के

मेरे एहसास की ज़ाम पीने के लिए।

और अपनी सारी पीड़ा फूंक मार उड़ा देना 

खिड़की के कोने से बाहर।


फिर देखना तुम कितने हल्के हो जाते हो,

मेरी इस धुन को सुनकर 

जो सिर्फ तुम्हारे लिए बजती है

मेरे इस दिल में हर सुबह-शाम।


शब्द पढ़ तुम पावन मास बन जाना

मेरे त्योहारों के लिए।

या बन जाना दहकते पलाश

मुझे रंगने के लिए चटख रंगों से।


ये आसमान की अटारी से उतरे शब्द है..

सुबह की बेला में लिखे शब्द है..

ये धूप-छांव समेटे शब्द है..

ये वसंत का उपहार

गहरे मख़मली

सेमल से सुंदर शब्द है।

तुम्हारीे स्मृति में सजने को उत्साहित है।

गीतों में ढलने को उत्साहित है।

जीवन में जुड़ने को उत्साहित है।

ये गहरे सौम्य शब्द

सिर्फ तुम्हारे लिए।










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