रिश्तें.....
रिश्तें भावनात्मक आदान-प्रदान पर टिके होते है।
इसे नफा-नुकसान पर नहीं तोला जा सकता है।
मान-सम्मान, ईमानदारी, प्रतिबद्धता, सहानुभूति, सहयोग, स्वीकृति सब किसी भी रिश्तें में जरूरी होते है। लेकिन संचार और संवाद हर रिश्ते की रीढ़ है।
आजकल अधिकतर रिश्ते समझौते पर टिके होते है
जहाँ न खुशी होती है न कुछ और बस दिखावा होता है
अपनेपन का।
आधुनिकता के रंग में रंगे हम सब इंसान कम पशु ज्यादा हो गए है।
एक कविता ------रिश्तें
दिन सुलझा नहीं कि रात हो गई
फिर ख़ामोश दीवारों से बात हुई
रोटी अनमनी सी पेट में गई
रौब जमाती टीवी आंखों के सामने आई
एक उम्र को सामने देखा
बिल्कुल मुझ जैसी ही थी
थके हाल,
सामने विचारों का मायाजाल
दुनिया भर के खेल-तमाशे
आंखों के सामने
फिर भी सूनापन घर में समाए
हृदय विहीन रिश्तें
बुत बने ताकते
न आवाज देते
न आवाज सुनते
सुलझते ही नहीं
ये वर्षों के झमेले।
गलती किसकी कौन जाने
इस भूल-भुलैया से
कैसे बाहर निकले
इस चंचल मन को
कैसे समझाए
जिंदगी एक मेला है
मौत न आये
ये तब तक का खेला है।।
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