सांसों के पिंजरे में कैद जिंदगी


 कुछ कड़वी, कुछ खट्टी, कुछ मीठी, रेगिस्थान में भटकते रेत सी जिंदगी।

कभी आँधियों में उड़ती रेत सी जिंदगी,

सांसो के पिंजरे में कैद जिंदगी,

तड़पती है....घुटती है.....मचलती है......रोती है......पर मौत नसीब नहीं।

दफ़्न ख्वाइशों की जिंदा मिशाल बन अश्क़ो में बहती है। सिसकती है। 

ऐ जिंदगी तू हमें इतना क्यूँ रुलाती है।

ऐ जिंदगी हमें इतना क्यूँ तड़पाती है।

हम तो तेरे गुलाम है। 

एक हँसी को हमें इतना क्यूँ तड़पाती है। 

ऐ जिंदगी जिस्म को तो आदत है,

नंगे पांव अंगारों पर चलने की।

पर रूह अश्क़ो में पिघल कर रोती है, तड़पती है। 

चैन की तलाश में बैचेनियाँ पलती है। 

ख्वाइशों के दंगल में उम्मीदें तड़पती है।

एक सिरहन सी उठती है।

एक आह सी निकलती है। 

और नम आंखो के किनारे कुछ मोती आ लुढ़क जाते है। 

कुछ कोनो पर ठहर जाते है।

कुछ होठों की अंदर घुट मर जाते है।

कुछ रूह को मार जिंदगी जीते है। 

कुछ वक़्त के हाशिये पर मिट जाते है।

ऐ जिंदगी तू ऐसी क्यूँ है, ऐ जिंदगी तू ऐसी क्यूँ है??


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