नील-सूरज (छोटी प्रेम-वार्तालाप)
बाजार में घूमते हुए दोनो खूब सारी एक-दूसरे की पसंद की चीजें लेते है। वहाँ एक दुकान पर एक छोटी बच्ची बैठी थी जो उन दोनों को देखते ही बोल पड़ती है।ले लो साहब ये लाल-लाल चूड़ियां गोरी मैम के लिए। ये सुन नील शरमा जाती है। लेकिन सूरज बहुत खुश होता है। वो दोनो चीजे खरीद होटल पहुंच जाते है। और खाने का आर्डर दे बिस्तर पर धम.. से पड़ जाते है।
सूरज~नील तुम्हारा प्रेम
अतल से फूटता जलस्रोत है मेरे लिए।
मेरी अभिलाषाओं का आश्रय स्थल।
हाँ!
जहाँ हर शब्द में तुम मुझे गूंथ देती हो
एक सिरा खुद पकड़ एक सिरा मुझे पकड़ा देती हो।
और समय से बंधी मुझ से आ बंध जाती हो।
नील तुम दहकती हो
महकती हो
मचलती हो
मेरे होंठो पर सज
मेरे रोम-रोम में खिल जाती हो।
मेरी प्यारी नील...
तुम शब्द हो, मैं तुम्हारा अर्थ हूँ।
मैं शब्द हूँ, तुम मेरा अर्थ हो।
ये बोल सूरज नील को घँटों बांहो में लिए बैठा रहता
और नील उसकी बांहो में ही ख़यालों में खो जाती।
उसकी हो जाती।
घूमने जाने से पहले दोनों आईने के सामने एक साथ तैयार होते। कई बार सूरज नील को आईने के सामने ऐसे देखता की नील शर्म से पूरी लाल हो जाती और अपनी पलकें झुका लेती तो सूरज उसे और छेड़ता
सूरज~अरे इतना क्यों शर्मा रही हो,
नई नवेली दुल्हन की तरह।
नील~उसे गुस्से में और घूरती तो सूरज जोर से हंस देता।
नील~मुझे कहीं नहीं जाना तुम्हारे साथ।
सूरज~तो किसके साथ जाना है।
नील~किसी के साथ नहीं जाना।
सूरज~ठीक है मैं अकेला चला जाता हूँ।
नील~तुम्हें शर्म नही आएगी अकेले जाते हुए।
सूरज~अरे अब तुम्हें नहीं चलना तो क्या करूँ।
नील~तो गोद मे उठा कर क्यों नहीं ले चलते।
सूरज~इतना खाती हो,
मोटी हो गई हो तो कैसे उठाऊं?
नील~मैं सच में मोटी हो गई न?
मुझे भी लग रहा है मेरा वजन कुछ बढ़ गया है।
सूरज~हाँ बढ़ ही गया है।
और बस दोनों की नोंक-झोंक शुरू
दोनों बिना बात लड़ पड़ते है।
और उनका जाना कैंसिल हो जाता है।
दोनों मुहँ फुला कर सो जाते है।
पर नींद किसी को नहीं आती।
और फिर सूरज नील को बस ज़रा सा मनाता है
और नील तो जैसे इसी बात का इंतजार कर रही थी।
दोनों का झगड़ा बंद दोनों एक-दूसरे की बांहो में खिल कर सो जाते है। फिर शाम को उठ घूमने जाते है।
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