चंद्राकार घाव (इंतज़ार)

 


"डाली से तोड़कर फूल कुचलते नहीं है,

लहू का रंग हाथों पर मसलते नहीं है।"


पैरों के नीचे धूल बहुत है..

आंखों में तिनके चुभ रहे है..

रक्तरंजित शरीर से खून बह रहा है..

बेजान आत्म चुपचाप

प्रश्नों के छल में उत्तर ढूंढ़ रही है।


पलाश से अंगारे मन में जल रहे है

रात्रितिमिर का खुरदरापन

यादों संग....

आंखों से तकिये पर झर रहा है।


कौतूहल व्याप्त हो जाता है ज्यों ही तुम मेरी कल्पना में व्याप्त हो जाते हो।



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