बूढ़ी काकी और नीम
सुबह गइया बांधी नीम तले
फिर उपले सुखाए नीम तले
धुले बाल सुखए नीम तले
शाम तक हर काम किया नीम तले
रात तक वो खुद हो गई नीम
रिश्तों को सहेजते सहेजते
उम्र बीत गई
पर उसका कड़वापन न गया
अब खटिया पर नीम तले
लेटी काकी बहुओं को
देती है प्रवचन नीम से
सबके जबान को कर देती है
खारा निम्बोली खिला।
जो पाया वही दे रही
सबको नीम।
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