मन की बात मन से (स्त्री)

 


रोज अकेलेपन से लड़कर वो पहुंची

देवों की देहरी पर

सर पटक देवों से पूछा

मेरा जीवन क्यूँ ऐसा?

देव ख़ामोश बस सुनते रहे उसके मन की दशा

फफक-फफक कर खूब रोई वो देवों के समीप जाकर

देव फिर भी रहे खामोश कुछ न बोले।

बस मूरत बन खड़े रहे

वो बोलती रही अपने मन की हर बात।

बोलते बोलते जब वो थक गई

शान्त चित हो देवों के चरण में शीश नवा लौट आई घर।

आज एक असीम ऊर्जा का विश्वास का स्रोत बह रहा था उसके मन में।

क्योंकि वो अपने मन की हर बात देवों को बोल आई थी

खुद की बाते खुद से कर आई थी।

जो कोई नहीं सुन रहा था, कोई नहीं समझ रहा था।

देवों ने चुपचाप सुन ली थी उसकी पुकार।


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