समझौते का बोझ

 समझौते का बोझ

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स्त्रियां सदैव उठाती है एक बोझ

समझौते का बोझ।

स्वाभिमान को मार

अपनाती है अदृश्य बेड़िया

परिवार, समाज की खातिर।

तभी तो सीता की उपाधि पाती है?

और अंत तक देती है अग्नि परीक्षा

अपने वजूद की तलाश में

सिसकियों में जीवन व्यतीत कर।


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