धीरज धरो ओ सजना

 


मैं प्रीत की डोरी

तुम प्रेम की डोरी।

मैं छलकता सावन

तुम उमड़ते मेघ।

मैं सौंफ, सुपारी

तुम पान का बीड़ा।

मैं सुहागन

तुम सुहागसेज।

मैं दुल्हन

तुम दर्पण मेरे।

मैं महलों की रानी

तुम राजा मेरे

ओ सजना

धीरज धरो

आई रे आई सजनी।



तुम बरखा की बूंदे

जो मुझमें ही रमे

ये जाता दिसंबर

ये आती जनवरी

इसमें खिले ये सर्द सुहागन

अपने पिया जी मे ही रमे

ये वैदेही सी सजनी

ओ सजना।

धीरज धरो

ओ सजना!!


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

प्यार के रूप अनेक

कौन किससे ज्यादा प्यार करता है??