निज मन (स्मृति)
स्मृति की अंनत यात्रा पर निकली हूँ।
बुनियादी सवालों से उलझी
एक सतत यात्रा पर निकली हूँ।
स्मृति की नदी में हौले-हौले
डूबना-उतरना अच्छा लगता है।
इस बलखाती नदी में
डूबकर नहाना अच्छा लगता है।
स्मृति की नदी में कई धाराएं
जुड़ी होती है।
स्मृति बिता हुआ कल होती है।
स्मृति भोगा हुआ यथार्त होती है।
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