आओ चाँद सूरज की सताते है...!!
आओ चाँद, बातें करते है,
सूरज की खिंचाई करते है।
रात में बूढ़ी माँ से इसकी
शिकायत करते है।
दूध-बताशे की जगह इसे
बर्फ का गोला खिलाते है।
आधी रात इसे उठाकर
बादलों की सैर कराते है।
सुबह दूर पहाड़ी के पीछे
धुंध में इसे छिपाते है।
आओ चाँद
इसे ओस का काढ़ा पिलाते है।
कोहरे का वस्त्र पहनाते है।
इसने सबको बहुत सताया है।
इस ठंडी में कभी दिखता है,
कभी भाग जाता है।
इस सर्दी में ये हमसे आँख-मिचौली
करता है।
हमें छुपकर सताता है।
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