प्रेम का झरना
मेरे अंदर न सूखने वाला एक झरना है।
पहाड़ से उतरती एक नदी है।
एक तालाब भी है
जो कभी खाली नहीं होता है।
हमेशा बहता रहता है
हमेशा भरा रहता है।
जैसे काले बादलों में
पानी भरा रहता है।
बंजर जमीं को सींचने के लिए
मैं भरी रहती हूँ।
प्रेम से प्रेम को सींचने के लिए।
आकर्षण
तुम्हारे आकर्षण में मैं बिन डोर
खींची चली जाती हूँ।
तुम मुझे बरबस अपनी ओर खींच लेते हो
बस एक आवाज लगा
तुम मुझे खुद में समेट लेते हो।
तुम्हारी सादगी से मैं बेहद
प्रभावित हो गई हूँ,
मैं आजकल तुम बन गई हूँ।
बिना बात अब खुद से बाते करती हूँ
घँटों तुम्हारा इंतजार करती हूँ
वो भी तुम्हें बिना बताए।
जानते हो मैं ये सब नहीं चाहती
फिर भी सब कर रही हूँ
सिर्फ तुम्हारे लिए।
अपने प्रेम के लिए।
जानती हूं नियति तो कुछ और ही है,
पर अब सब स्वीकार चुकी मैं।
हृदय में स्थान दे चुकी मैं तुम्हे।
अब यूं ही मेरे हृदय में रहना
मेरे हृदय का लाल रक्त बन कर,
मेरे जीवित रहने तक।
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