अवनि ने अम्बर को पुकारा
अवनि ने अम्बर को पुकारा
देख चहुँ और का नजारा
बंजारा सूरज धरती तपाने लगा है।
सागर सुखाने लगा है।
ओ मेघ राजा अब तो आजा
अपनी फुहार से इस सूरज का
ताप थोड़ा कम कर जा।
पहाड़ी कंधे से उतर
आम की डाल पर बैठा सूरज
अपनी तपिश से सबको डराता सूरज
मिट्टी के घड़े में सबको डुबोता सूरज
अपनी कामयाबी पर इतराता सूरज
दिन में सबको जलाता
रात में छिप जाता सूरज।
अवनि देख ये दिनकर की चालाकी
उषा संग आया
निशा में घुल गया
संध्या संग
पहाड़ी की ओट में छिप गया है।
अब कल भरी दोपहरिया इसे आने दे
सर पर सबके नाचने दे
उसी वक्त मेघ राजा को बुलाऊँगी
इसे फुहार में भिगोऊँगी
दिन में तारें दिखा
इसकी ज्वाला शांत करूँगी।
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