नियति का विधान विचित्र है। संसार का सबसे सुंदर फूल दुर्गम घाटी में खिलता है। कदम्ब का फल बहुत सुंदर होता है, पर मधुर नहीं। सांच की आंच पर हर इंसा पकता है। राई सी जरूरते तरसता मन, मोहताज़ खुशियां समय की आंधी में बिन शोर उड़ती रहती है। कतरे-कतरे में खुद को गलाता इंसा सब स्वीकार करता है। क़िस्मत को कुछ मंजूर नहीं ये सोच तसल्ली का घूंट पी लेता है। भीतर तक आहत बस मद्धम-मद्धम गीत गुनगुना लेता है। नँगे पैर धरती का स्पर्श करता, सूरज की आभा तले गुड़हल के फूल सा मुस्कुरा लेता है। अपनी झोपड़ी में खुद को टटोलता, बरसते नेह से अपनी छवि के चक्कर लगा सिमटकर सो जाता है। नियति का विधान विचित्र है। हर संभव में असंभव मिला, अँधेरे में उजियारा तलाशता इंसा.. निर्दोष जीवन, काल के ग्रास में अचरज भरा जीवन जी लेता है!!
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