असफलता

 

असफलता इंसान को तोड़ती ही नहीं, अंदर से खोखला भी कर देती है। फिर उसमें भरता है क्रोध, वो क्रोध जो उसका सर्वस्व निगलने की ताकत रखता है। और वो क्रोध उस इंसान को एक दिन निगल ही जाता है।


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