हमारा जीवन मूल्य , हमारी विचारधारा तय करती है......
और हमारे विचारों की उड़ान हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए........
असफलता
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असफलता इंसान को तोड़ती ही नहीं, अंदर से खोखला भी कर देती है। फिर उसमें भरता है क्रोध, वो क्रोध जो उसका सर्वस्व निगलने की ताकत रखता है। और वो क्रोध उस इंसान को एक दिन निगल ही जाता है।
की जाणां मैं कौन? की जाणां तू कौन? सत्य क्या?, असत्य क्या? कुछ न समझ आये। सितारों के संकेत क्या? नसीब के खेल क्या? मन की दुविधा तन की व्याधि क़िस्मत पर समय की लिखावट कैक्ट्स जैसे चुभते सवाल रेत में दफ़्न मायूस उत्तर डूबती आँखे गले में घुटती सांसे ठंडी पड़ती अस्थियां जीवन का स्वांग रचते सामाजिक पहलू। विषैले समझौते कैसे हर पल डसते है। खुद के गुनाह ढूंढते खुद को दोष देते है। परम्परा में जीने के आदि सबके बीच सुलग घाट की सीढ़ियों पर निढाल होते है। डर के साए में नदी में उतर चैन से सोते है!!
पीड़ा कैसी भी हो, आँखों के कोरो पर नमी आ ही जाती है। दिल का दर्द जबां से निकल ही जाता है। गहरा अनुभव श्वेत हो ही जाता है। अपनी ही बर्बादी का जश्न कैसा? चित्कार स्वभाविक है। अशांत वातावरण में, अनिश्चितता आयेगी ही। मदिरालय की मदिरा से जिस्म बहकता है, अंगारे में जल राख होता है। तेजाब में जल स्वाहा होता है। बेरंग झील में यक़ी का खून हुआ हो तो, शहर भर में काले-बादलों का शोर गूंजेगा ही। आत्मीयतता ले डूबी, अब बाढ़ में मिट्टी कटेगी ही। संवेदना का जहर पियो तो, सच्चाई जाऱ-जाऱ रोयेगी ही। पत्थर पर सर पटक-पटक मर जाओ, आस्था चुप कराने भी न आयेगी। पथरीले, बोझील, नाउम्मीदी सफ़र में, ख्यालों में भी मंजिल के दर्शन कहा हो पाते है। बंजर ज़मी में लहू सींच दो, वृक्षों का जमघट कहाँ लग पता है। पीड़ा कैसी भी हो, आँखों के रास्ते बाहर फैल ही जाती है। दर्द का मंजर समेटे, काले बादलों में मिल, बाढ़ ले ही आती है। ले ही आती है!!!
एक हार आपके मन से सारा डर निकाल देती है। फिर वो हार चाहे रिश्तों कि हो या किसी और चीज की और जब डर निकलता है, तभी जीत हासिल होती है। बाहर तो हम सभी घूमते है, क्या कभी मन में घूमे हो आप? नहीं न, यही तो हमारी भूल है। दुनिया तो घूम आये पर मन को तलाशना भूल गए, औरो के विचार ढोते-ढोते हमारे खुद के विचार कहीँ खो गए। रहस्य और रोमांच जीवन में होने चहिये पर इसके लिए किसी और पर आश्रित क्यूँ होना। जीवन की किताब है हम सब जिसमें कुछ अच्छे कुछ बुरे विचार भरे है। कुछ पन्ने खाली रह गए है, विश्वास कि कमी के कारण जिसे हमें भरना है आत्मविश्वास से। उम्र से लम्बा सफ़र है जिसे रोते-रोते क्यूँ पूरा करना। एक यात्रा परिंदों सी करते है, बिना कल कि चिंता किये आज उड़ान भरते है। राह में आये फूल, काँटों सबसे हाल-चाल पूछते है। कहते है उम्मीद से दुनिया चलती है,, तो फिर हम जिन्दगी कि कठिनाइयों में अपनी उम्मीद क्यूँ खो दे। दोस्ताना व्यवहार अपना कर एक नई जंग जीती जा सकती है। हमारी जिंदगी बदल तो नहीं सकती पर थोड़ा सा आत्मविश्वास डाल कर उसे बेहतर बना सकते है। अपने डर को हरा एक नई ...
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