एक किस्सा इंतज़ार का बेपनाह प्यार का। अब वो जमाना तो रहा नहीं कि चिट्ठियों का इंतज़ार करना ही पड़ेगा। अब जमाना है मोबाइल का। और ये मोबाइल वाला प्यार... भी असली वाला प्यार ही होता है। शायद ये उससे भी बढ़कर होता है। प्यार तो आखिर प्यार होता है जनाब! तो आज का किस्सा है। (इंतज़ार) आज उसका मन नहीं लग रहा था। दो दिन से उससे बात नहीं हुई थी तो वो बेहद उदास थी। आंखों में आंसू लिए बार - बार उसकी प्रोफ़ाइल पर जाकर उसको निहार रही थी। मन ही मन उसकी डीपी से तो कभी उसकी फोटो से बातें कर रही थी। फिर मन ही मन कभी उसे उल्हाना दे रही तो कभी उससे दूर चली जाऊंगी छोड़ कर कह रही थी। फिर इनबॉक्स खोलकर देखती की उसका कोई मेसेज आया या नहीं। न,न.. ऐसा नहीं है कि वो उसे धोखा दे रहा था। ये बात वो भली भांति जानती थी कि वो किसी काम की वजह से मजबूर होगा। पर आज उसमें भावनाओं का सैलाब उमड़ा था। वो विचारों के दंगल में फंस सी गई थी। लंबे इंतजार के बाद वो आंखों में आंसू लिए तकिए पर सर रख कर मोबाइल पर एक सेड सांग सुनती हुई सो गई। अगली सुबह मोबाइल पर जैसे ही मैसेज फ्लैश हुआ वो लड़ने पहुँच गई उससे और लड़ते - लड़ते खो गई उसक...
मिट्टी के मनुष्य की तलाश कब खत्म हुई है। गहरी निंद्रा में भी भटक रहा है। ताम्बूल चबाते सोच गटक रहा है। सड़क निहार डगमगा रहा है। स्वप्नों में भी शगुन-अपशगुन का दंश झेल रहा है। जो रोग न हुआ ज़ाहिर उसे खुली आँखों से मौन हो सोच रहा है। बेवजह मुस्कुरा ख़मोशी ओढ़ रहा है!! फुट-फुट कर रोने की वजहें बहुत है, ग़मों के गुलिस्तां में। घायल मन उमड़ता है, बरसता नहीं। इक अजब दर्द है अब कागज़ पर उतरता नहीं। आइना बहुत साफ किया पर अपना अक्स दिखता नहीं। लाख कोशिशें की मुस्कुराने की पर अब होंठो पर मुस्कान सजती नहीं!! दुखी पाठशाला में सब नैनों में आये सैलाब में बह रहे है। नोका में हुए छेद से गंगा में डूब रहे है। आंखे मूंदकर देवताओं से बचा लेने की गुहार कर रहे है। व्याकुल मन को अंगीठी में जला स्वर्ण कर रहे है!!
एक हार आपके मन से सारा डर निकाल देती है। फिर वो हार चाहे रिश्तों कि हो या किसी और चीज की और जब डर निकलता है, तभी जीत हासिल होती है। बाहर तो हम सभी घूमते है, क्या कभी मन में घूमे हो आप? नहीं न, यही तो हमारी भूल है। दुनिया तो घूम आये पर मन को तलाशना भूल गए, औरो के विचार ढोते-ढोते हमारे खुद के विचार कहीँ खो गए। रहस्य और रोमांच जीवन में होने चहिये पर इसके लिए किसी और पर आश्रित क्यूँ होना। जीवन की किताब है हम सब जिसमें कुछ अच्छे कुछ बुरे विचार भरे है। कुछ पन्ने खाली रह गए है, विश्वास कि कमी के कारण जिसे हमें भरना है आत्मविश्वास से। उम्र से लम्बा सफ़र है जिसे रोते-रोते क्यूँ पूरा करना। एक यात्रा परिंदों सी करते है, बिना कल कि चिंता किये आज उड़ान भरते है। राह में आये फूल, काँटों सबसे हाल-चाल पूछते है। कहते है उम्मीद से दुनिया चलती है,, तो फिर हम जिन्दगी कि कठिनाइयों में अपनी उम्मीद क्यूँ खो दे। दोस्ताना व्यवहार अपना कर एक नई जंग जीती जा सकती है। हमारी जिंदगी बदल तो नहीं सकती पर थोड़ा सा आत्मविश्वास डाल कर उसे बेहतर बना सकते है। अपने डर को हरा एक नई ...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें