कसैली यादें रोज़ नया सबक सिखा रही है....!!!

मन में जलती उदिप्त अग्नि
कसैली यादें ला मन को गाढ़ा
नेत्रों को लाल करती है।

जीवन डगर की पलछिन यादें
सड़को पर बिखरी धूप सी तपती है।
पतझड़ में रेत सी उड़ती है।

एक हँसी को मन तरसता है,
बिन बादल बरसात में तन घुलता है।

नयनों के गड्ढों में पानी भरता है,
और हौले-हौले तन को भिगोता है।

बाट जोहता विश्वास
रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरता है।

प्रेम की कल्पना में प्रेम करना भूल गए,
सूनी आंखे तारे गिन-गिन,
खुद को बहला रही है।

नित नई पहेली जीवन डगर में,
कांटे बो रही है।

चेतना की चिड़िया,
सूनी डाल पर उड़ रही है।

सामने भविष्य खड़ा है,
पर मरी यादें,
भूत में दौड़ा रही है।

उल्लास की गेंद आसमां में उछल रही है।
पर आँखों से ओझल हो गायब हो रही है।

पथरीली जमीं समतल बनाने की चाह
पर अनेक पर्वत राह रोके खड़े है।

विषमता की काली जंजीर
मन को जकड़ रही है।
धरा पर पटक-पटक
रोज नया सबक सिखा रही है।
सबक सिखा रही है!!!








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