पीर मन की...!!!

दिसम्बर की धुप गले लगाने का मन करता है।
अंगीठी के सामने कुल्हड़ की चाय पीने का मन करता है।
सर्द हवाओं को कम्बल के बाहर खदेड़ने का मन करता है।
गुड़ की मीठी रोटी माँ के हाथों से खाने का मन करता है।
छत की सुनहरी धुप अपनी कलम में भरने का मन करता है।
टुकड़े-टुकड़े हुई यादों को सहेजकर
अपने सीने में भरने का मन करता है।
तेरे ज़ख्मो पर अपने गीले मोतियों से
मरहम लगाने का मन करता है।
तेरे संग जिद्द की धुप में
हँसी-ठिठोली करने का मन करता है।
तेरी परछाई में अपनी परछाई मिलाने का मन करता है।
तुझे कसकर गले लगा
सारे गीले-शिकवे मिटाने का मन करता है।
अपनी हथेली से बदनसीबी की लकीर
मिटाने का मन करता है।
गुजरते साल को अलविदा कहने से पहले
कसकर गले लगाने का मन करता है!
तेरी यादों को तरोताज़ा कर..
दिल में संजो कर रख लिया है।
सुनहरी धुप से कुछ वादे कर..
बिखरी जिन्दगी को..
नये साल में समेटकर..
खुद में रखने का वादा खुद से कर लिया है!!

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