दस्तक...!!!
तुम्हें पता है अपनी हदें.. मुझे पता है अपनी हदें.. तू दस्तक है, मैं बंद किवाड़ों सी। तुम्हारा निश्चल प्रेम.. मेरा अश्रुपूर्ण प्रेम.. उलझ गए एक दूसरे में। न जाने तुम कब जीवन में आ गए कुछ पता न चला। भोर की वेला में किरण बिखेरते रश्मियों को गले लगाते, मेरे मन को भा गए। तुम्हारा स्नेह भरा निमंत्रण अस्वीकार न कर पाई। तुम सांसो में उलझे.. मैं तुम्हारी वाणी में उलझी। तुम्हें आंखों में बंद किये होंठो पर चुप हो गई। तुम चंदन लाये.. मैं सुगंध महसूस कर न पाई। मेरा प्रेम हृदय पिघलाता है। तुम मेरे भाग्य की छुपी रेखा में विराजमान थे। मैं ये जान न पाई। मुझे तो कुछ भी न चाहिए था। तुम कैसे आ गए पहचान न पाई। मेरी दहलीज़ पर मौन क्यों खड़े हो। अब दिल का दरवाजा खोल दिया है। सिर्फ तुम्हारे लिए। अब यूँ ही बने रहना मेरे वजूद के इर्द-गिर्द मंडराते रहना सदैव!!