हंसी

मैंने कहा फूलों से तो वो खिलखिला कर
हंस दिए।
कितना अच्छा गाना है कुछ याद आया इस गाने के बारे में।
Hi मैं हूँ नीलम अग्रवाल आज इस हंसी पर एक कविता लिख रही हूं आप सब पढ़ियेगा जरूर और बताइएगा भी जरूर की कैसी लगी आपको ये कविता।
......हंसी......
अपने गम भुलाने को एक हंसी
कानों तक फैल गई,
आंखों के इर्द-गिर्द लकीरों में खो
होंठो पर बहक गई।

हंसी मानो
देह के भीतर का शोर या मानो
भीतर का आनंद।
भीतर जैसे कुछ भरा-भरा
कुछ खाली-खाली
भीतर जैसे कोई बच्चा
कभी रो कर हंस रहा हो तो कभी
रोते-रोते हंस रहा हो।

हंस-हंस सबको
आकर्षित कर रहा हो।

हंसना कितना अच्छा होता है।
सारे विचार ठहर जाते है।
अपने आप मे खो जाते है।।

जापान में हंसते हुए बुद्ध होतेई की एक कहानी है।
होतेई की जिंदगी का उद्देश्य ही बस हंसना था। वह एक स्थान से दूसरे स्थान, एक बाज़ार से दूसरे बाज़ार घूमता रहता। वह बाजार के बीचों-बीच खड़ा हो जाता और हंसने लगता- यही उसका प्रवचन था।
उसकी हंसी सम्मोहक थी, एक वास्तविक हंसी, जिससे पूरा पेट स्पंदित हो जाता है।
वह हंसते-हंसते जमीन पर लोटने लगता।
लोग उसके आस-पास जमा हो जाते, और वे भी हंसने लगते, फिर हंसी फैल जाती, हंसी की तूफ़ानी लहरें उठतीं, और पूरा गांव हंसी से आप्लावित हो जाता। लोग राह देखते कि कब होतेई उनके गांव में आए, क्योंकि वो अद्भुत आनंद और आशीष लेकर आता था। उसने कभी एक शब्द नहीं बोला। बुद्ध के बारे में पूछो और वो हंसने लगता, बुद्धत्व के बारे में पूछो और वह हंसने लगता, सत्य के बारे में पूछते कि वह हंसने लगता। हंसना ही उसका एकमात्र संदेश था।
हर सुबह जब जागें, तो अपनी आंखें खोलने से पहले, पूरा शरीर तान ले
और हंसते हुए, मुस्कुराते हुए आंखे खोले।
आपके पूरे दिन का गुण ही बदल जाएगा।।
मात्र एक हंसी से!



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