बासिन कन्या
सात भाइयों की एक बहन थी, जिसका नाम सुंदरियां था। माता-पिता नहीं थे। परिवार बहुत गरीब था। बहन सुंदरिया घर का काम करती, भोजन बनाती, लीपना-पोतना भी उसी की ज़िम्मेदारी थी। खेत पर भाइयों के लिए भोजन लेकर जाती और प्रेमभाव से उन्हें खिलाती। एक दिन सतवन (सबसे छोटा भाई) ने लाल भाजी खाने की इच्छा जताई। सतवन ने नेहवश सुंदरिया कोलिया (घर के पास का खेत) से लाल भाजी तोड़कर लाती है। साफ़ पानी से धोकर हंसिया से छोटे-छोटे टुकड़ों में काटती है। भाजी काटते समय उसकी हथेली में हंसिया लग जाती है। चोट पर सुंदरिया का ध्यान नहीं जाता। भाजी पकाने के बाद उसे पता चलता है कि उसकी हथेली कट गई है। उसका खून लाल भाजी में पक जाता है। सुंदरिया भाजी को फेंकना चाहती है, पर दोपहर हो गई है। भाइयों के पास भोजन पहुंचाने का समय हो गया है। सुंदरिया वही भाजी लेकर खेत पर जाती है। भाइयों को भोजन परोसती है।
भोजन करते करते बड़ा भाई कहता है कि आज भाजी बहुत स्वादिष्ट बनी है। सुंदरिया ने कहा हमने तो रोज की तरह ही बनाया है। बड़ा भाई ऊंची आवाज में बोलता है, 'सुंदरिया बता क्या है इस भाजी में?' सुंदरिया बताती है, आज जब भाजी काट रही थी, तब मेरी हथेली कट गई थी, हाथ से जो खून निकला था, वो भाजी में मिल गया' सुंदरिया सिसकते हुए बोली। घर लौटते समय बड़ा भाई कहता है कि आज भोजन में सुंदरिया का खून मिलने से भाजी स्वादिष्ट हो गई थी। कुछ देर चुप्पी के बाद बोलते हैं, 'सुंदरिया का खून जब इतना मीठा है तो उसका मास कितना मीठा होगा?'
छहों भाई अंततः स्वादलोलुपता में अपनी छोटी बहन को मार देते है, दवाबपूर्वक प्राणहन्ता तीर अपने छोटे भाई से चलवाया जाता है। जो उसे बहुत प्यार करता है। उसी से कहते है कि उसका मास पका। हैरत है,
आत्मा चीत्कार कर उठे, ऐसी विवशता। ऐसे में छोटे-छोटे जीव-जंतु संवेदना के वाहक बनते है, वो पास आकर मनुष्यों की बोली बोलते है, भाई को ढांढस बंधाते है। छोटा निरीह भाई भय में बड़े भाइयों का हर कहा मानता है। लेकिन बहन का अपने हिस्से का आया मांस सुंदरिया हृदय जंगल में गाड़ देता है। बारिश का मौसम आता है। तब वहां एक पौधा अंकुरित होता है। कुछ दिनों के बाद एक अहीर जंगल में गाय और भैंस चराने जाता है। उसे एक झाड़ी में संगीत सुनाई देता है। वह उस पौधे के शाखा को काट लेता है। उससे बांसुरी बनाता है। बांसुरी सुरीली है। एक दिन जब वह बांसुरी को बजाता हुआ सतवन के घर के सामने से जाता है,
तब बांसुरी से अपने-आप स्वर निकलते है---
'सात भाइयन के हम हन बहिनी, मार दिया मन मार।
घरबार सभारन डोरिउ नाधन, करन चेरोरी बहु बार।।'
ये एक जनजातीय कथा है, बेहद मार्मिक।
आंखों से अविरल आंसू बहते रहते है कथा सुनते हुए।
भोजन करते करते बड़ा भाई कहता है कि आज भाजी बहुत स्वादिष्ट बनी है। सुंदरिया ने कहा हमने तो रोज की तरह ही बनाया है। बड़ा भाई ऊंची आवाज में बोलता है, 'सुंदरिया बता क्या है इस भाजी में?' सुंदरिया बताती है, आज जब भाजी काट रही थी, तब मेरी हथेली कट गई थी, हाथ से जो खून निकला था, वो भाजी में मिल गया' सुंदरिया सिसकते हुए बोली। घर लौटते समय बड़ा भाई कहता है कि आज भोजन में सुंदरिया का खून मिलने से भाजी स्वादिष्ट हो गई थी। कुछ देर चुप्पी के बाद बोलते हैं, 'सुंदरिया का खून जब इतना मीठा है तो उसका मास कितना मीठा होगा?'
छहों भाई अंततः स्वादलोलुपता में अपनी छोटी बहन को मार देते है, दवाबपूर्वक प्राणहन्ता तीर अपने छोटे भाई से चलवाया जाता है। जो उसे बहुत प्यार करता है। उसी से कहते है कि उसका मास पका। हैरत है,
आत्मा चीत्कार कर उठे, ऐसी विवशता। ऐसे में छोटे-छोटे जीव-जंतु संवेदना के वाहक बनते है, वो पास आकर मनुष्यों की बोली बोलते है, भाई को ढांढस बंधाते है। छोटा निरीह भाई भय में बड़े भाइयों का हर कहा मानता है। लेकिन बहन का अपने हिस्से का आया मांस सुंदरिया हृदय जंगल में गाड़ देता है। बारिश का मौसम आता है। तब वहां एक पौधा अंकुरित होता है। कुछ दिनों के बाद एक अहीर जंगल में गाय और भैंस चराने जाता है। उसे एक झाड़ी में संगीत सुनाई देता है। वह उस पौधे के शाखा को काट लेता है। उससे बांसुरी बनाता है। बांसुरी सुरीली है। एक दिन जब वह बांसुरी को बजाता हुआ सतवन के घर के सामने से जाता है,
तब बांसुरी से अपने-आप स्वर निकलते है---
'सात भाइयन के हम हन बहिनी, मार दिया मन मार।
घरबार सभारन डोरिउ नाधन, करन चेरोरी बहु बार।।'
ये एक जनजातीय कथा है, बेहद मार्मिक।
आंखों से अविरल आंसू बहते रहते है कथा सुनते हुए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें