दास्ता अकेलेपन की (कोरोना वायरस)
भरे -पूरे घर की मालकिन सुलभा। यूँ तो बहुत सुघड़ गृहणी थी। लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े हो रहे थे आत्मनिर्भर हो रहे थे, और सुलभा अकेलेपन का शिकार।
पति अपने काम मे व्यस्त बच्चे अपने कॉलेज में व्यस्त।
ऐसे में सुलभा का वक्त काटे नहीं कट रहा था।
बस सुबह-शाम काम, खाना फिर सारे दिन अकेले रहती थी वो। टीवी, अख़बार पढ़-पढ़ कर बोर हो चुकी थी।
ऐसे में एक दिन खबर आई उनकी जिठानी बीमार हो गई है, उसे कोरोना हुआ है। कोरोना उस वक्त नया था वो समझ नहीं पाई कि ये कौन सी बीमारी है। खैर उसके पति जैसे-तैसे उसे वहाँ अपनी भाई- भाभी से मिलाने ले गए।
लेकिन ये क्या उन्हें उनसे मिलने ही नही दिया गया और उल्टा उन दोनों को वहाँ रहने भी नही दिया गया। फिर जैसे-तैसे वो दोनो अपने घर वापस आये। लेकिन यहाँ आते ही सुलभा की तबियत खराब हो गई डॉक्टर ने उसे कोरोना बताया। सुलभा को घर मे ही अलग छत पर बने कमरे में रख दिया गया। उसका खाना वहीं गेट के नीचे से दिया जाने लगा इससे सुलभा बहुत आहत हो गई। एक तो बीमार शरीर में जान नही ऊपर से अकेलापन वो बर्दास्त नहीं कर पा रही थी। खैर वो जल्द ही ठीक हो गई और घर में जो जैसे चल रहा था चलने लगा। ऐसे ही एक साल बीत गया अब उसकी और सबकी कोरोना से जान-पहचान हो गई थी। अब कोरोना जाने वाला था वैक्सीन भी आ गई थी। लेकिन ये क्या कोरोना तो जैसे अपना जन्मदिन मना वापस आ गया और कुछ बड़ा भी हो गया।
मतलब पहले से ज्यादा खतरनाक होकर आया।
अब सब एहतियात बरत रहे थे लेकिन सुलभा को न जाने कैसे फिर कोरोना हो गया इस बार उसको हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा। और वो वहाँ अकेले पड़ी रही उससे किसी को मिलने नहीं दिया जाता था। वो तड़पती रहती लेकिन घर वाले सब मजबूर थे नहीं मिल सकते थे उससे।
एक दिन अचानक रात में उसकी तबियत बिगड़ी और उसकी मौत हो गई। फिर भी कोई नही मिल सका उससे।
उसके अंतिम संस्कार में भी कोई नही गया। घर के सब लोगो को कवारेंटिंन कर दिया गया। उन लोगो को ऐसा लगा जैसे उनका इस घड़ी में भी सबसे नाता टूट गया हो।
कुछ दिन बाद घर में तो सब पहले जैसा हो गया लेकिन सुलभा जीते जी अकेली रही बीमारी में अकेले रही और तो और मौत में भी अकेली रही।
इससे बड़ी बदकिस्मती और क्या हो सकती थी उसके लिए।
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