....स्त्री....


#स्त्री
एक स्त्री टुकड़ो में जीती
पूरी मरती है।
नहीं मरता तो उसका विश्वास
कि वो जिंदा है।
और लेती है सांसे
टुकड़ो में।

एक स्त्री टुकड़ो में जीती
पूरी मरती है।
अपनी ही देहरी में सिमटी
ग़ैरों को बेजुबान लगती है।
स्त्री तुम इतनी गूंगी क्यूँ हो?
क्या तुम सच में मर गई या
अभी भी जीवित हो?
जैसी देखती हो
वैसी ही हो न?

स्त्री तुम ऐसी क्यों हो,
सब समझ कर भी अनसमझ।
भावों में बहती..
सच्चाई में मरती।
फूल सी खिलती..
धूल में मिलती।
हर ना में भी..
हाँ मिलाती सी।
ये जीने का हुनर
किससे सीखा तुमने?
अपनी ही परिधि के चक्कर लगाती,
अपने जिस्म से अनजान
दुसरो के मन में मिलती।
तुम ऐसी क्यों हो?

एक स्त्री तब तक जीवित होती है,
जब तक उसकी अस्थियां ही उसे चुभ न जाए!

#Female
A woman won in pieces
She dies completely.
If he does not die then his faith
That he is alive
And takes breath
In pieces.

A woman won in pieces
She dies completely.
Confined in my own body
The non-residents feel unmatched.
Why are you so dumb lady?
Are you really dead or
Are you still alive?
As you see
Are you the same?

Woman why are you like this
Everyone is unaware even after understanding.
Flows in emotions
She would die in truth.
Flowers bloom
Join the dust.
Even in every way
Yes.
This living skill
From whom did you learn?
Revolves around his own circumference
Unaware of your body
See you in the mind of others.
Why are you like this?

A woman is still alive
Until his bones pierce him.

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