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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आंतरिक प्रेम.....

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आंतरिक प्रेम महसूस किया है, मैंने अक्सर तुम्हारे साथ। कर्तव्य भाव जागा है, तुम्हारे साथ। हर प्रश्न पर तुमनें मुझे माँज कर चमकदार बना दिया है। अपने साथ जोड़ कर पूर्ण कर दिया है। तेरा-मेरा प्रेम आरंभ से अंत तक ऐसा ही रहेगा न? सारे नियम कायदों में कीमती रहेगा न? हर हाल में प्रेम जीवंत रहेगा न? देह कौन? देही कौन? दोनों एक ही तो है। भोग कौन? भोगने वाला कौन? ये भी दोनों एक ही है। एक आत्मा, एक मन और दोनों शरीर में ही है!

प्यार से ज्यादा जरूरी क्या???

स्त्री को कुछ ज्यादा की चाहत है। पुरुष कुछ कम मिलने से आहत है। दुनियां भले बदल गई पर प्यार आज भी वही पर कायम है। बराबरी की जटिलता अहंकार का दानव कभी-कभी प्रेम को लहूलुहान कर देता है।

सुलभा

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वक्त के सांचे में पकता ये अनमोल जीवन रोज बदल जाता है अनचाहे ही। एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी~~ कहानी एक स्त्री की उसके वजूद की स्त्री का दारोमदार आज भी क्या है? वही घर परिवार की जिम्मेदारियां और चूल्हा-चौका। सुलभा यही आज की कहानी की पात्र। यूं तो सुलभा बहुत सुलझी हुई थी पर घर सम्हालते-सम्हालते बहुत उलझ चुकी थी। कम उम्र में ब्याही गई सुलभा बहुत कम उम्र में ही प्रौढा बन गई थी। पति किसी और स्त्री के चक्कर में उसे छोड़ कर चला गया था। उसके 2 छोटे बच्चे थे। घर का सारा काम करती। और बचे समय में कपड़े सिलती घर चलाने के लिए। सँयुक्त परिवार था इसलिए वो टूटी नहीं जीवन की गाड़ी चला रही थी। इसी दौरान पति को पैसों की जरूरत आन पड़ी और वो घर आ गया घर में फसल के पैसे आये हुए थे इसलिए। सारा काम उसका देवर ही सम्हालता था। जब उसका पति घर आया हुआ था तभी अचानक कोरोना के कारण लॉक-डाउन हो गया और उसका पति वही घर पर ही फंस गया।मजबूरी में अब वो सबके साथ घर पर ही है। सब्जियां उगा रहा है और पत्नी को भी वक्त दे रहा है। उसके घर में अब सब ये देख आश्चर्य चकित है ये बदलाव कैसे हो गया। एक तरफ सब लोग परेश...

अनुभव

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खुद को बहलाना भी जरूरी है, खुद को वास्तविकता दिखाना भी जरूरी है। दर्जनभर किताबों से नहीं अनुभव से खुद को सलाह दे। टुकड़ो में बांट ले दिन एक टुकड़ा खुद के लिए भी रख ले। धूप भी घनी छांव भी घना है। वास्तविकता की नींव में दम  भी घुटता है। बखान भी मिलता है। घुटनों भागे बच्चे की आंख में आई चमक को बताया नहीं जा सकता। रोगी मां के माथे पर आई चिंता की लकीर को समझा नहीं जा सकता। हर दृश्य के पास वाणी नहीं होती और हर वाणी के पास दृश्य नहीं होता। बस शब्दों का गुच्छा वर्णन करता है। कभी पूरा तो कभी अधूरा।

प्रेम क्या है??

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आध्यत्मिक प्रेम एक अलौकिक एहसास है। सारे शब्दों के अर्थ जहाँ अर्थहीन हो जाते है, वहीं से प्रेम के बीज का प्रस्फुटन होता है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट श्टाइनबर्ग ने प्रेम के त्रिकोणीय सिद्धांत में प्रेम के तीन घटक बताए हैं- जुनून (दैहिक आकर्षण), आत्मीयता (लगाव की गहरी भावना और सांझा करने की चाह), और प्रतिबद्धता (रिश्ते को बनाये रखने की चाह) प्यार हमेशा इन तीनों  घटकों पर ही टिका होता है। क्या प्यार बलिदान चाहता है? नहीं प्यार कोई बलिदान नहीं चाहता। प्यार का मतलब ही अपने साथी को उसकी अच्छाइयों और कमियों के साथ स्वीकारना होता है। सही मायने में सच्चा व परिपक्व प्रेम वह होता है, जो कि अपने प्रिय के साथ हर सुख-दुख, धूप-छांव, पीड़ा आदि में हर कदम साथ रहता है। और एहसास कराता है कि मैं हर-हाल में तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए हूँ। जार्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है- दुनिया में दो ही दुख है। एक जो तुम चाहो वह न मिले, और दूसरा जो तुम चाहो वो मिल जाए। एक में न मिलने से दुखी होते है, और दूसरे में खोने के डर से दुखी होते है। प्यार को मजबूत बनाने के लिए उसकी बुनियाद में कुछ विशिष्ट भावों का होना ...

चौबीस घँटे

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चौबीसों घँटे समय आगे बढ़ता रहता है फिर आप और हम क्यों रुक जाते है? क्या हम  "फालूदा खाते दांत टूटे, तो बला से" वाली कहावत चरितार्थ करते है? मतलब जो दांत फालूदा खाने से टूट जाये, ऐसी मुश्किल का जिक्र करने से क्या फायदा। नदी का मूल, और ऋषि का कुल नहीं देखा जाता है। माना चौबीसों घँटे कोई एक सा नहीं रहता समय भी नही, लेकिन समय कभी रुकता नही आगे बढ़ता ही रहता है। दुख की लौ में भी जलिये यही लौ आपकी नजरें साफ करेगी आपको यही सही मार्ग भी दिखाएगी। सुख और दुख तो आते-जाते रहते है। राम को भी वनवास भोगना पड़ा था, सीता का विछोह सहना पड़ा था। लेकिन अगर राम वनवास न जाते रावण सीता को उठा कर न ले जाता तो रावण का अंत भी असंभव था।  "इक लाख पूत सवा लाख नाती। तिन रावण घर दिया न बाती"।  जिस रावण के घर बेटों-पोतों की कमी न थी, उसके घर में दिया जलाने वाला भी कोई नहीं बचा था। जब हर तरफ विपदा दिखे कोई राह न सूझे तो बस थोड़ा सा शांति से काम लीजिये कोई न कोई राह सूझ ही जाएगी यकीन मानिए। बुरे दिन  "तवे पर पड़े बूंद"  जैसे होते है पल भर में न सही पर कुछ वक्त में उड़ ही जायेंगे। कु...