आध्यत्मिक प्रेम एक अलौकिक एहसास है। सारे शब्दों के अर्थ जहाँ अर्थहीन हो जाते है, वहीं से प्रेम के बीज का प्रस्फुटन होता है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट श्टाइनबर्ग ने प्रेम के त्रिकोणीय सिद्धांत में प्रेम के तीन घटक बताए हैं- जुनून (दैहिक आकर्षण), आत्मीयता (लगाव की गहरी भावना और सांझा करने की चाह), और प्रतिबद्धता (रिश्ते को बनाये रखने की चाह) प्यार हमेशा इन तीनों घटकों पर ही टिका होता है। क्या प्यार बलिदान चाहता है? नहीं प्यार कोई बलिदान नहीं चाहता। प्यार का मतलब ही अपने साथी को उसकी अच्छाइयों और कमियों के साथ स्वीकारना होता है। सही मायने में सच्चा व परिपक्व प्रेम वह होता है, जो कि अपने प्रिय के साथ हर सुख-दुख, धूप-छांव, पीड़ा आदि में हर कदम साथ रहता है। और एहसास कराता है कि मैं हर-हाल में तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए हूँ। जार्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है- दुनिया में दो ही दुख है। एक जो तुम चाहो वह न मिले, और दूसरा जो तुम चाहो वो मिल जाए। एक में न मिलने से दुखी होते है, और दूसरे में खोने के डर से दुखी होते है। प्यार को मजबूत बनाने के लिए उसकी बुनियाद में कुछ विशिष्ट भावों का होना ...