माँ...

इमरजेंसी वार्ड
माँ एड्मिट है, पास किसी को जाने नहीं दे रहे है।
माँ ख़ामोश, कोई हरकत नही है।
बेज़ान शरीर!

वार्ड के बाहर पूरा परिवार एकत्र है।
सबको पता है माँ बस आज या कल की मेहमान है।
सबकी आँखे गीली, सब चुप अतीत में खोए है।

तभी एक नर्स बाहर आई, 'मांजी के लिए दवा लानी है'।
इनका कोई है यहाँ 'एक साथ कई आवाज आई मैं हूँ'।
वो किसी एक को पर्ची थमा गई।
पर्ची में सिर्फ ग्लूकोज की बोतल और एक दर्दनिवारक दवा का नाम था। दवाई वाले से पता चला।

घर के एक समझदार व्यक्ति ने कड़ा "डिसीजन" लिया।
डॉक्टर से बात कर माँ को घर ले जाने की इजाजत मांगी।
पर डॉक्टर तैयार नहीं थे। 'हम मरीज को आपको ऐसे नही ले जाने नहीं दे सकते'।
'अगर उनको कुछ हो गया तो ये हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी'।

लेकिन बहुत जिद्द करने पर और बहुत सारे कागज साइन करा लेने के बाद माँ को घर लाने की इजाजत मिली।
माँ घर आने के बाद बस रात भर सबके साथ रही।
सुबह हम सबको छोड़ भगवान के पास चली गई।

जिस शरीर मे जान ही नही थी, डॉक्टर उसमें भी अपने हॉस्पिटल का बिल बना रहे थे।
ये कैसी इंसानियत!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उस पार जाऊँ कैसे....!!!

प्यार के रूप अनेक

नियति का विधान...!!!