सौदेबाज क़िस्मत
क़िस्मत की क्या कहिये कभी आंधियों में रेत सी उड़ती है, तो कभी ओलो की मार सहती है, तो कभी हाड़ कपाती पूस में जम जाती है।
रामदीन बहुत खुश था। बारिश इस बार अच्छी हुई थी तो उसकी कनक की फसल भी कनक सी चमक रही थी। लहलहा रही थी। रामदीन मन ही मन सारा हिसाब लगा कर चल रहा था कि उसे इस बार की फसल से आये पैसों से क्या-क्या करना है। उसे खुश देख उसकी पत्नी और 10 साल की बेटी भी बहुत खुश थे।
बेटी मन ही मन इस बार नया स्कूल का बैग लाने की सोच रही थी। और पत्नी एक टीवी जिसमें वो परिवार के साथ बैठ कर कोई नाटक देख सके लाने की सोच रही थी।
एक दिन रात में हिम्मत कर बेटी बाप ले कंधों पर झूल गई।बाबा इस बार मुझे क्या दिलाओगे, अरे बिटिया तू जो कहेगी वो लाकर दूंगा तुझे मेरे कोई 4,6 बच्चे थोड़ी है तू तो इकलौती है मेरी रानी बिटिया तू जो कहेगी बाबा तेरे लिए वही लेकर आएगा। बिटिया खुश हो सपने बुनती सो गई।
पत्नी बोली इस बार सारा दरीदर धूल जाएगा, मकान ठीक कराकर जो पैसे बचे तो मेरे लिए भी एक छोटा टीवी ला देना।
फिर उस पड़ोसन के चाशनी में लिपटे ताने नहीं सुनने पड़ेंगे।
रामदीन बोला अरे सब ला देंगे तू चिंता मत कर अब सो जा।
दूसरे ही दिन सुबह लॉकडाउन हो गया पूरे भारत में।
रामदीन चिंता में पड़ गया फिर सोचा कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। लेकिन लॉकडाउन बढ़ता ही गया।
रामदीन बहुत परेशान था,पर सोच रहा था, लॉकडाउन खुलते ही सबसे पहले जैसे-तैसे फसल बेचकर आएगा।
लेकिन इस बीच एक दिन जोड़दार आंधी चली, बारिश हुई और ओले बरस गए मोटे-मोटे, सारी खड़ी फसल खराब हो गई।
रामदीन सिर पकड़ कर बैठ गया और याचक सा आकाश की और ताकने लगा। 'हम गरीबो की ही परीक्षा क्यों लेते हो भगवान बार-बार'। पत्नी-बेटी छोड़ो अब कर्जा कैसे चुकाऊंगा जो फसल की बुआई के लिए ली थी।
और उसकी आँखें बिन बादल ही बरसने लगी।
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