चाँद का गुमान
सच, कौतूहल, और कल्पना सब मिलकर हम पर जादू
जैसा असर करता है।
मनोविज्ञान की भाषा में " कल्पना सच से अधिक ताकतवर होती है, और ये कल्पना ही एक दिन सच बनती है।
चाँद और पृथ्वी के बीच का गुरुत्वाकर्षण रहस्य।
विज्ञान ने बता दी चाँद की असलियत।
तो मन ने सोचा उधार की चाँदनी पर इतना गुमान क्यूँ?
मंदिर- मस्जिद पर टँगा..
सब व्रतियों को ये इतना तड़पाता क्यूँ है?
एक कविता
चाँद पर...
ऐ चाँद तुम्हें खुद पर
इतना गुमान क्यूँ है?
आसमान में झूलते
मीनारों को छूते
सबकी कल्पनाओं में
बूंद-बूंद क्यूँ टपकते हो?
तुम तो प्रेम का शिखर हो,
फिर झील में डूबते क्यूँ हो?
कांसे के थाल में भरे दूध जैसे हो,
फिर उबड़-खाबड़ पिंड जैसे क्यूँ हो?
तुम प्रेम का आलिंगन
फिर बूढ़ी माई के पीछे छिपते क्यूँ हो?
तुम भावना प्रधान
फिर दूर से सबको ठगते क्यूँ हो?
तुम पूनम का चाँद..
तुम दूज का चाँद..
तुम चौथ का चाँद..
फिर कलंक का चाँद..
तुम बनते क्यूँ हो?
तुम जल का कारक ग्रह
फिर तुम पर जल क्यूँ नहीं?
तुम इतने कठोर
फिर गुमान किस बात पर।
बताओ ऐ चाँद
अपना ये रहस्य
अपना ये गुमान।
बताओ तो सही?
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