लघुकथा : निर्जला अरी ओ निर्जला

निर्जला अरी ओ निर्जला ~~
सुबह-सुबह कहाँ मर गई, अभी तक करमजली ने चाय का ग्लास नहीं पकड़ाया है।
इसके माँ - बाप ने नाम भी सोच - समझ रखा है " निर्जला "
ऐसा लगता है महीनों से इसने रोटी नहीं खाई है।
सुखी लकड़ी सी काया वाली लड़की।

मुआ मेरा बड़ा बेटा जाने इसमें क्या देख ब्याह लाया।
जरा आंधी आ जाये तो कम्बख़्त लड़खड़ाने लगती है।
लगता है, अभी हवा में उड़ जाएगी।

लो आ गई महारानी, ये सुबह - सुबह कहाँ गई थी।
आधा घँटा हो गया मुझे चिल्लाते हुए,  मेरी चाय कहाँ है ?

उसी का इंतजाम करने गई थी माँ जी,  
इंतजाम करने ?
अरी चाय का कौन सा इंतजाम करने गई थी ?
चाय गैस पर बनाती है,  और चायपत्ती, चीनी, दूध, अदरक सब घर में रखा है।

गैस खत्म हो गई थी माँ जी सो पड़ोसन के यहाँ  चाय बनाने
गई थी।   ' देर हो गई '।

ला चाय ला, सुबह - सुबह सारा दिन खराब कर दिया तूने।
रात को नहीं बता सकती थी किसनवा को कि गैस खत्म होने वाली है।

कहा था माँ जी, तो उन्होंने कहा पड़ोसन के यहाँ जा उस बुढ़िया के लिए चाय बना लाना।
फिर जब सूरज चढ़ आएगा मैं सिलेंडर ले आऊंगा।

क्या कहा तूने, किसनवा ने बुढ़िया कहा मुझे,

हाँ माँ जी!

वो पड़ोसन भी कह रही थी, लग गई तलब इस बुढ़िया को सुबह - सुबह चाय की।

और कहा भौजी जीना हराम कर रखा है इस बुढ़िया ने तुम्हारा, कैसे सहती हो सब।

निर्जला की सास बिना कुछ कहे निर्जला को देखती रह गई।
और चाय का ग्लास उसके हाथ से छूट गया।

वो मन ही मन बोली।

आज तो सज में निर्जला उपवास हो गया भगवान जी।
ये कैसी परीक्षा ले रहे हो मेरी
अबकी बार भूल हुई व्रत छूट गया था।
अब से कभी व्रत तोड़ पाप की भगीनी नहीं बनूंगी, ये बोल निर्जला की सास चादर तान वापस सो गई।
सुबह सबको परेशान न करने की कसम खा।

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