कागज़ का टुकड़ा

 


उस एक कागज के टुकड़े ने सबकी नींद उड़ा दी थी।

वो कोई आम कागज का टुकड़ा नहीं था।

एक छोटा सा वसीयत नामा था।

जो उसके पिता लिख कर किसी वकील के यहाँ रख गए थे।


अभी तेरहवाँ भी नहीं हुआ था। ये तेरहवें से एक दिन पहले ही सबको वकील से मिला था।

पूरे मेहमानों के बीच इस कागज़ के टुकड़े की कानाफूसी सी हो रही थी।  कल तेरहवाँ था पर आज सब स्तब्ध थे। आखिर ऐसा क्यों हुआ?

सब यही सोच रहे थे। 


इतने अच्छे बेटे-बहु, एक अच्छे घर में ब्याही लड़की जो अपने पिता का बहुत ध्यान रखते थे। उनकी हर जरूरत का ख्याल रखते थे।

फिर ऐसा निर्णय क्यों हुआ सब इन्ही विचारों में उलझे थे।


फिर वो दिन भी बीत गया आज उनके पिता का तेरहवाँ था और सब काम ठीक से हो रहा था। इसी बीच वो वकील आ गया और कहा आप सबका निर्णय क्या है, जल्दी बता दीजिए मुझे ये कोट में केस दाखिल करना है। सब एक साथ बोल पड़े केस, कैसा केस?


वसीयत का केस जो इनके गोद लिए बेटे को मिलने जा रही है इन दोनों को नहीं।

पर ऐसा क्यों, ये बेटा इन्होंने कब लिया जो कोई नहीं जानता।

इतने में उनका बेटा और बेटी बोल पड़े हां आप ये सारी प्रोपर्टी उस नेक इंसान को दे दे।

अब सब अचंभित थे। ये देख उनके बेटे ने कहा

आप सब अचंभित न हो यही ठीक है।

ये कह कर, उसने बताना शुरू किया।

पापा की किडनी खराब हो गई थी उन्हें किडनी की जरूरत थी जो किसी अपने की ही लग सकती थी।

मैंने और दीदी ने अपनी किडनी नहीं दी उन्हें क्योंकि हमें अपने परिवार की चिंता थी खुद की चिंता थी इसलिए। उसी हॉस्पिटल में हमें वो शख्स मिला था।

वो एक गरीब घर का लड़का था जो अपने बीमार पिता को बचाने के लिए अपनी किडनी बेचने को तैयार हो गया था। हमनें उसे पैसे देकर किडनी ट्रांसप्लांट करवाई थी पापा की। ये बात हमनें पापा से छुपाई थी।

लेकिन शायद उन्हें सब पता चल गया था।

इसलिए उन्होंने उसे गोद लिया और अपनी सारी प्रोपर्टी  उसके नाम कर दी।

आप सब हमारी चिंता न करे हमारे पास भी पिता का दिया बहुत है लेकिन उस नेक इंसान की बराबरी हम नहीं कर पाए। वकील साहब कोई केस नहीं करना है हमें जो वसीयत में लिखा है वही हमारा भी निर्णय है।


क्योंकि अब वो कुछ नहीं कर सकते थे,

तो अच्छे बनने में ही भलाई थी।


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