जेवर
सुप्रिया की शादी होते ही वो गहनों से लाद दी गई।
कानों में बड़े-बड़े झुमके, भारी मंगलसूत्र, दोनों हाथों में मोटे-मोटे कड़े, पैरों में भारी-भारी पायजेब, और हमेशा एक जरी-गोटे वाली साड़ी। सुप्रिया ये सब पहन फूली नहीं समाती थी। उसे भी ये सब पहनना बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन शादी के एक महीने बाद ही वो इस सब गहनों के भारीपन से दबने लगी थी। वो अपनी सास से जेवर उतार हल्के जेवर पहनने की बात कहना चाहती थी पर सास की खुशी देख कह नहीं पा रही थी।
उसकी सास जो भी आता उसके सामने खनदानी गहनों की तारीफ लेकर बैठ जाती थी।
सुप्रिया का एक देवर कंवारा था। एक दिन उसने अपनी सास को एक रिश्तेदार को कहते सुना अब दूसरे बेटे की भी जल्दी शादी करनी है, 'तो रिश्तेदार ने कहा
दूसरी बहु को भी इतना ही जेवर चढ़ाना पड़ेगा आपको वो भी ले रखा है क्या'? तो उसकी सास बोली
अरे! नहीं
यही जेवर पहन कर मैं ब्याह कर आई थी इस घर में।
यही जेवर पहन कर बड़ी बहू आई है, और यही जेवर पहना कर छोटी बहू को ले आएंगे। फिर इन जेवरों को
अगली पीढ़ी के लिए बैंक में रख देंगे।
सुप्रिया सब सुनती रह गई जिन जेवरों से वो दबी जा रही थी वो उसके थे ही नहीं।
वो जेवर तो बस दिखावे के थे।
उसके जेवर तो बस जो मायके से मिले थे वो थे।
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